इस ब्रह्मांड में कई तरह के लोक हैं, इन लोकों में अलग अलग तरह की प्रजातियों का निवास है। कुछ लोक पृथ्वी से नजदीक हैं कुछ दूर।

यक्ष, किन्नर, गंधर्व, पिशाच, प्रेत , अप्सरा इत्यादि शक्तियां देवताओं से निम्न शक्ति वाली हैं। ये पृथ्वी लोक से नजदीक रहती हैं। मान्यता है नजदीकी लोक में स्थित शक्तियों को प्रसन्न करना आसान है क्योंकि इनतक हमारी मानसिक तरंगें जल्दी पहुंचती हैं।

यक्ष और यक्षिणी की साधना- यक्ष एक ऐसी प्रजाति है जो कि रहस्यमयी और मायवी है। 64 प्रकार के यक्षों की प्रजाति पाई जाती है। इनमें से एक कुबेर नाम के यक्ष सुप्रसिद्ध हैं जो कि देवताओं के कोषाध्यक्ष हैं और अकूत धन संपदाओं के स्वामी भी हैं।

इस तरह यक्षणियां भगवान शिव और माता पार्वती की सेवा में लगी रहती हैं। ये चुड़ैल और पिशाचों से अलग हैं और साधक द्वारा सिद्ध की जाती हैं। इन्हें सिद्ध करने वालों को मद्य, मांस, मत्स्य को नैवेद्य और प्रसाद के रूप में लेना पड़ सकता है। 


लक्जरी कार, मखमली गद्दे पर सोना, ढेर सारा पैसा, खूबसूरत औरतों का साथ, संतान का होना , नौकर चाकर की सेवा, ऊंचा नाम क्या आप इसी सुख की बात कर रहे हैं ? यह सुख आकाश में चमकने वाली बिजली के समान क्षणिक है।

रावण जो श्रेष्ठ शिल्पी विश्वकर्मा द्वारा निर्मित सोने की लंका में रहता था, नाना प्रकार के भोग और संसाधन उसके पास मौजूद थे, आकाश, पाताल और पृथ्वी के अधिकांश भागों पर उसका राज था। रावण सौंदर्य, रुप, कांति, यौवन, तप आदि से भरा हुआ था। तीनों लोकों की सुंदरतम स्त्रियां उसके महल में रहती थीं, कुबेर के समान उसके पास धन वैभव का भंडार था। नाती पोते सहित उसका विशाल परिवार था, रावण के भौंह तनते ही देवताओं, राक्षसों और मनुष्यों में खलबली मच जाती थी।

इसके विपरित राम वनवासी, स्त्री वियोग में दुःखी और तमाम तरह के कष्ट सह रहे थे। वहीं रावण इधर उधर की स्त्रियों का अपहरण करके कामसुख भोगता था। लेकिन भविष्य किसका उज्जवल हुआ- राम का ना कि रावण का।

पापी लोग भले ही बाहर से सुखी नजर आते हों लेकिन वो अपनी नजरों में गिरे हुए होते हैं ‌। मखमली बिछौने पर भी उन्हें नींद नहीं आती सोते समय वो भविष्य की भयानक झलक सपने में देखते हैं।

पापियों का अंत--

रावण हो या कोई अन्य पापी मनुष्य इनका अंत बुरा ही होता है, कोई भी इन्हें पसंद नहीं करता । पापियों को उनकी हैसियत उनके घर वाले ही बता देते हैं। मान लीजिए आज कोई जवानी की जोश में खूब पाप कर रहा है, दूसरों को मार काट कर अपना घर भर रहा है लेकिन जैसे ही वह कमजोर पड़ने लगेगा वैसे ही उसकी हालत एक कुत्ते के समान हो जाती है। घर में पड़ा रहेगा उसकी संतान और पत्नी उसके कुकर्मों की याद उसे दिलाएंगे, वह सोते समय चौंक कर उठ जाएगा क्योंकि सभी पाप उसे रह रह कर याद आते हैं।

बुरे कर्म करने वाला बुढ़ापे में रोग और शोक से दुःखी होकर रोता है, चीखता है लेकिन कोई भी उससे सहानुभूति नहीं रखता। एड़ी घिस घिसकर मौत होती है। यह सब बातें मैं हवा में नहीं कर रहा बड़े-बड़े अत्याचारी शासकों से लेकर साधारण लोगों का अंत बुरा ही होता है।

हमें क्या करना चाहिए—

मुझे तो अब भी अच्छाई पर भरोसा है, अच्छे व्यक्ति बनिए लेकिन इमोशनल मूर्ख मत बनिए। अच्छे लोगों का यह दुनिया जमकर फायदा उठाती है उनसे बचिए। सब को खुश रखने की कोशिश बिल्कुल मत करिए, गलत लोगों का साथ और गलत बात का बिल्कुल समर्थन मत करिए। आज कल तो लोग हत्यारों और बलात्कारियों का भी चरणामृत पी रहे हैं ऐसा मत बनिए।

लक्जरी लाइफ स्टाइल रखना खराब बात नहीं है, जरुर कोशिश करिए सुखी संपन्न रहने की लेकिन किसी को दुःख पहुंचा कर जेब मत भरिए।

विजय दाम्भक
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आपके ज्ञान का पिटारा से और देखें
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अक्ल पर पत्थर पडे हो तभी ऐसे विचार आते है महाश्य… खैर आप ये बताये क्या लडकी देने से ही दो जातियो मे प्यार बढता है?? अगर हाँ तो मै एक सरकारी अध्यापक हूँ, अविवाहित हूँ और जाति से ब्राह्मण हूँ आप कोई दलित कन्या मेरे लिये ले आये.. और दोनो मिलकर भाईचारा मजबूत करेंगे….. ऊपर की बात आप मानेंगे नही क्योंकि आपक…
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Ajay Jain
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इस ब्रह्मांड में कई तरह के लोक हैं, इन लोकों में अलग अलग तरह की प्रजातियों का निवास है। कुछ लोक पृथ्वी से नजदीक हैं कुछ दूर।

यक्ष, किन्नर, गंधर्व, पिशाच, प्रेत , अप्सरा इत्यादि शक्तियां देवताओं से निम्न शक्ति वाली हैं। ये पृथ्वी लोक से नजदीक रहती हैं। मान्यता है नजदीकी लोक में स्थित शक्तियों को प्रसन्न करना आसान है क्योंकि इनतक हमारी मानसिक तरंगें जल्दी पहुंचती हैं।

यक्ष और यक्षिणी की साधना- यक्ष एक ऐसी प्रजाति है जो कि रहस्यमयी और मायवी है। 64 प्रकार के यक्षों की प्रजाति पाई जाती है। इनमें से एक कुबेर नाम के यक्ष सुप्रसिद्ध हैं जो कि देवताओं के कोषाध्यक्ष हैं और अकूत धन संपदाओं के स्वामी भी हैं।

इस तरह यक्षणियां भगवान शिव और माता पार्वती की सेवा में लगी रहती हैं। ये चुड़ैल और पिशाचों से अलग हैं और साधक द्वारा सिद्ध की जाती हैं। इन्हें सिद्ध करने वालों को मद्य, मांस, मत्स्य को नैवेद्य और प्रसाद के रूप में लेना पड़ सकता है। ऐसी ही आठ यक्षणियों को सिद्ध करने का विधान है ।

सुर सुन्दरी यक्षिणी

मनोहारिणी यक्षिणी

कनकावती यक्षिणी

कामेश्वरी यक्षिणी

रतिप्रिया यक्षिणी

पद्मिनी यक्षिणी

नटी यक्षिणी

अनुरागिणी यक्षिणी

उपरोक्त यक्षणियों को माह भर के भीतर प्रसन्न करके काम निकाला जा सकता है। इनको सिद्ध करने की विधि यहां नहीं बताएंगे।

देवी-देवताओं को प्रसन्न करना मुश्किल क्यों है-

देवी देवता उच्च कोटि की ताकतवर शक्तियां हैं। प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से संसार को चलाने की जिम्मेदारी इन्ही पर है। ये मनुष्य की पूजा पाठ पर जल्दी ध्यान नहीं देतीं। क्योंकि इनतक हमारी प्रार्थना या तरंगें पहुंच ही नहीं पातीं। इनसे निम्न लोक में रहने वाली शक्तियां हमारे निवेदन को रोक लेती हैं।

उदाहरण- अगर आप मुख्यमंत्री के पास कोई शिकायत या निवेदन लेकर जाना चाहें तो उनके नीचे काम करने वाले तुरंत अड़ंगा लगा देंगे। ठीक उसी तरह वहां भी चलता है।

इसी तरह अगर आप नारायण को प्रसन्न करने हेतु भक्ति करना शुरू करेंगे तो ये शक्तियां आपको तमाम तरह के प्रलोभन देकर आपको मायाजाल में उलझा देंगे ।

नोट- कलयुग के शुरुआती दिनों में इन विद्याओं का जमकर दुरुपयोग किया जाने लगा था। क्योंकि आधुनिक काल का मनुष्य अपने मतलब के लिए जाना जाता है। इसलिए ये साधनाएं श्रापित हो चुकी हैं । यह समय कर्म पर आधारित है । इसलिए इन सब चक्कर में पड़ कर अमूल्य जीवन ना बर्बाद करें। वैसे भी जो जिसकी पूजा करता है वह मरने के बाद उन्हीं के पास जाता हैं।